डेरा सच्चा सौदा (सिरसा) का नाम आप सभी ने सुन ही रखा होगा. इसकी स्थापना 29 अप्रैल 1948 को शाह मस्ताना जी बिलोचिस्तानी जी ने हरियाणा के सिरसा शहर में की थी. उन्होंने 1948 से 1960 तक हजारों लोगों को नाम जपाया व बुराइयो से बचाकर राम के नाम से जोड़ा. आप जी ने लोगो को पैसे, सोना और चांदी बाँट कर नाम जपाया. 1960 में मस्ताना जी ने देह त्याग दी और उनके बाद जिन्होंने डेरे की बागडोर सम्भाली वो थे जलालआणा के जैलदार सरदार हरवंश सिंह जी.
उनका नाम शाह मस्ताना जी ने बदलकर सतनाम सिंह जी रखा था और आज तक दुनिया उन्हें शाह सतनाम सिंह जी के नाम से ही जानती है.
शाह सतनाम जी को गुरुगद्दी सौंपने से पहले शाह मस्ताना जी ने उनकी बहुत सी परीक्षाएं ली. शाह सतनाम जी आश्रम आकर मस्ताना जी के सत्संग सुनते रहते थे. मस्ताना जी के वचनों से प्रभावित हिकर उनका दिल गुरुमन्त्र लेने को हुआ तो वो नाम शब्द लेने वालों के बीच बैठ गए. जब मस्ताना जी आए तो उन्हें खड़ा करके बाहर भेज दिया और बोले अभी तुम्हें हुक्म नही हुआ नाम की दात बख्शने का. ऐसे कई सत्संगों में हुआ कि शाह सतनाम जी नाम शब्द लेने के लिए बैठते और मस्ताना जी उन्हें नाम शब्द नहीं देते.
अंत मे शाह मस्ताना जी ने एक सत्संग में जहाँ शाह सतनाम जी नाम शब्द लेने वालों की भीड़ में सबसे पीछे बैठे थे, मस्ताना जी ने उन्हें आवाज लगाई और बोले आगे आजाओ और सबसे आगे बैठा कर उन्हें वचन किये कि आज तुम्हें नाम शब्द देने का हुक्म हुआ है. आज तुम्हें नाम बख्शेंगे. नाम देने के साथ आप जी ने शाह सतनाम जी को एक आम अपने माथे से लगाकर दिया और मस्ताना जी ने वचन किये ये कोई मामूली आम नही है आज से आपको अपना रूप बना लिया है.
शाह सतनाम जी की परीक्षा यहीं खत्म नहीं हुईं. शाह सतनाम जी बड़े जमींदार घर से थे. नाम देने के कुछ समय बाद शाह मस्ताना जी ने वचन किये कि आप अपना घर-बार सब गिराकर आश्रम में आ जाओ. शाह सतनाम जी अपनी हवेली को गिराकर सारा सामान लेकर दरबार आ गए. जब मस्ताना जी ने उनका सामान देखा तो उन्हें हुक्म दिया सामान अंदर नही लेकर जाना और सामान आपका है तो इसकी रखवाली भी आप ही करेंगे. उस समय ठंड के दिन थे तो शाह सतनाम जी पूरी रात अपने सामान की रखवाली करते रहे और सुबह होते ही सारा सामान लोगो मे बाँट दिया. यह देख मस्ताना जी खुश हुए.
इस प्रकार शाह सतनाम जी हर परीक्षा में सफल होते रहे और अंत मे गुरु जी ने उन्हें आश्रम की गुरु गद्दी सौंप दी.
शाह सतनाम जी बड़े शांत स्वभाव के थे. उन्होंने देश के कोने कोने में सत्संग किये और डेरे की शाखाएं और जगह बनानी शुरू की. शाह सतनाम जी ने ही उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के छोटे से शहर बरनावा में और हिमाचल के कांगड़ा जिले के चचिया नगरी में आश्रम बनाए और वहाँ सत्संग करके लोगों को नाम जपाया.
डेरा अनुयायी जो शाह मस्ताना जी के समय में हजारों थे, आप जी ने उनकी संख्या लाखों में पहुँचाई. सारा सारा दिन व रात आप जी ने संगत के नाम कर रखा था. गुरु जी आराम न करके, दिन रात संगत से मिलते व सत्संग करते. लाखों लोगों को आप जी ने बुराईयों से बचाकर राम के नाम से जोड़ा व इंसानियत का पाठ पढ़ाकर उन्हें जीने का ढंग सिखाया.
गुरु जी ने 1960 से 1990 तक गुरु गद्दी को सम्भाला और 23 सितम्बर 1990 को आप जी ने श्री गुरुसर मोडिया (राजस्थान) के नम्बरदार सन्त गुरमीत राम रहीम सिंह जी इंसान को गुरुगद्दी सौंपी. गुरुगद्दी सौपने के बाद पूरे डेढ़ साल तक आप जी ने अपने साथ बिठाकर सत्संग किये और वचन फरमाए:
"हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे. जो इनसे प्यार करेगा समझो हमसे प्यार करता है और जो इनको बुरा बोलेगा समझो हमें बुरा बोल रहा है."
13 दिसम्बर 1991 को आप जी ने इस शरीर को त्याग दिया व डेरा सन्त जी को सौंप दिया. इसके बाद सन्त जी ने तूफान मेल की तरह सत्संग फरमाए, मानवता भलाई के और कार्य करने शुरू किए और मात्र 29 साल में लाखों से प्रमियों की संख्या 7 करोड़ से पार पहुँच गई.
सच में शाह सतनाम जी ने खुद भी मानवता की सेवा की और आपने अनुयायियों को भी मानवता की सेवा करना सिखाया. सन्त राम रहीम जी को आपने अपना रूप बनाकर मानवता के ऊपर जो एहसान किया उसका कर्ज हम कभी नही उतार सकते.
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