Saturday, January 11, 2020

विवेकानंद-एक प्रेरणा....



भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। युवा देश की रीढ़ की हड्डी होती है। किसी देश का भविष्य युवा ही तय करते हैं। किशोरावस्था के बाद युवावस्था की शुरुआत होती है और ये 21 से 40 वर्ष तक चलती है। युवावस्था मनुष्य के जीवन की रचनात्मक अवधि मानी जाती है। ये वो महत्वपूर्ण समय होता है, जब युवा अपने जीवन में ग्रहण की गयी शिक्षा, संस्कार, अनुभव के आधार पर बर्ताव करते हैं। उम्र के इस पड़ाव में युवा विभिन्न चीज़ों की तरफ आकर्षित होता है। पर जो युवा इस उम्र में खुद पर नियंत्रण  रख कर किसी भी क्षेत्र में मेहनत करते हैं, वो एक दिन इतिहास रचते हैं। युवा दिवस मनाने की घोषणा 1984 ई. में की गयी।

रन फ़ॉर यूथ:

कईं राज्यों में इस दिन युवाओं के लिए मैराथन दौड़ आयोजित की जाती है। यह दौड़ 3 KM, 5 KM तथा 10 KM तक होती है। इस मैराथन प्रतियोगिता में रजिस्ट्रेशन करवा कर कोई भी हिस्सा ले सकता है। स्कूल, कॉलेज, महाविद्यालयों के छात्रों, ग्रामीण तथा शहरी लोगों से लेकर बड़े बड़े अधिकारी तक इस मैराथन का हिस्सा बनते हैं। पिछले कईं वर्षों से पुलिस अधिकारी, भारत सरकार के अधिकारी, राज्यों के मुख्यमंत्री राज्यपाल, तथा भारत के प्रधानमंत्री भी इसमें रुचि दिखाते है तथा भारत के युवाओं को इसके लिए जागरूक तथा आमंत्रित करते हैं। 

कैसे मनाया जाता है युवा दिवस:

भारत में युवा दिवस अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। स्कूल, कॉलेजों तथा महाविद्यालयों में इनडोर तथा आउटडोर प्रोग्राम होते हैं। जागरूकता रैलियां निकाली जाती है। कईं जगह विवेकानंद द्वारा रचित पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। 


भारत सरकार को इस दिवस के लिए ऐसे व्यक्ति का चुनाव करना था जिसके विचार, जीवन तथा आदर्श युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हो। इसके लिए स्वामी विवेकानंद जी को चुना गया। स्वामी विवेकानंद ऐसे युवा व्यक्ति थे जो संत, दार्शनिक, समाज सुधारक होने के साथ साथ महिला सशक्तिकरण पर बल देने वाले तथा देश के युवाओं के चरित्र निर्माण पर भी बल देते थे। महिलाओं के बारे में उनका कथन था कि महिलाओं को शिक्षा दो तो वो खुद बताएंगी कि उनके लिए क्या जरूरी है।

स्वामी जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को बंगाल रियासत के एक समृद्ध परिवार में हुआ। इनके बचपन का नाम वीरेश्वर था। पर घर का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। इनके पिता कलकत्ता हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। इनकी माता धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। धर्म की शिक्षा और संस्कार इनको घर से ही मिले थे। इनके घर में पूजा पाठ होता रहता था। इनकी स्मरण शक्ति कमाल की थी। किसी भी किताब को पहली बार में पढ़ने मात्र से याद कर लेते थे। रामायण और अन्य धार्मिक ग्रन्थों को उन्होंने कंठस्थ कर लिया था। 25 वर्ष की आयु में स्वामी जी ने घर छोड़ दिया था। रामकृष्ण परमहंस को उन्होंने गुरु बना लिया। तेज बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा होने के कारण परमहंस ने इनको सभी शिष्यों का प्रमुख बना दिया। 11 सितंबर 1893 को उन्होंने अमेरिका की धर्म संसद में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व  किया। उन्हें बोलने के लिए 2 मिनट का समय दिया गया। उनके व्याख्यान के प्रथम शब्द " मेरे अमेरिकी भाइयों बहनों " उस धर्म सम्मेलन में बैठे प्रत्येक व्यक्ति के दिल को छू गए। उन्होंने भाईचारे का सन्देश देने वाले हिन्दू धर्म का अमेरिका में भी प्रचार किया। उन्होंने रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ की स्थापना की। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। 4 जुलाई 1902 को उन्होंने 39 वर्ष में बेलूर मठ में समाधि ले ली।


आडम्बरों तथा कुरीतियों का खण्डन :

उन्होंने समाज में व्याप्त बहुत सी कुरीतियों, धार्मिक आडंबरों, पुरोहितवाद और जातिवाद का खंडन किया। उन्होंने धर्मयोग, कर्मयोग, भारतीय नारी, मेरा जीवन तथा ध्येय, जाति, संस्कृति तथा समाजवाद आदि पुस्तकें लिखी। किसी भी बात को वें कहने भर से नही मानते थे बल्कि उसे तर्क की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही स्वीकार करते थे। 


स्वामी विवेकानंद द्वारा कही गयी बातें आज भी उतनी ही सच है, जितनी पहले थी। उनके अनमोल विचार आज भी युवाओं का मार्गदर्शन करते है। अगर उनके विचारों को जीवन में उतारा जाए तो सफलता सहज ही प्राप्त हो जाएगी। उनके द्वारा कहे गए कुछ अन्य सुविचार।


●  उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।

● एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।

● पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।

● महिलाओं को शिक्षा दो तो वो खुद बताएंगी की उनके लिए क्या जरूरी है।

● आप जो कहते हो करते हो वो एक तिहाई है, और आपका विकास, चरित्र सब कुछ दो तिहाई है

● शिक्षित होने का ये मतलब कतई नहीं है कि आप कुछ सूचनायें दिमाग में इकट्टा करते हो जिसका जीवन में कोई फायदा नही हो, बल्कि शिक्षा जीवन निर्माण, व्यक्ति निर्माण और चरित्र निर्माण पर आधारित होनी चाहिए।

Contributed By: Mr. Pramod Kumar (@PARMODKUMARHERA)

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